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दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय वेब-संगोष्ठी

"मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जाम्भाणी साहित्य"

(29-30 जून 2020)

आयोजक

हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई

जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर

प्रस्तावना

वर्तमान वैश्वीकरण के युग में मध्यकालीन साहित्य को लेकर एक खुला विमर्श आवश्यक है। उसमें अर्थ की ऐसी अनेक सुनी-अनसुनी अनुगूंजें हैं जिन्हें सुनने-सुनाने का कार्य आधुनिक समीक्षा पद्धति बखूबी कर सकती है। यह हिन्दी साहित्येतिहास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सृजनात्मक आंदोलन है। इसे भारतवर्ष का प्रथम नवजागरण भी माना जाता है। गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से यह साहित्य इतना उत्कृष्ट और विपुल है कि उसकी श्रेष्ठता को लक्षित करने के लिए ‘स्वर्ण युग’ जैसे शब्द का प्रयोग किया जाता है।

इस युग के साहित्य में न केवल मध्ययुगीन समाज, संस्कृति सामंती समाज की विसंगतियां, तत्कालीन भयावह, यथार्थ की विदू्रपता, उच्चतम मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, लोकधर्म का सम्यक निर्वाह तथा साहित्य की उदात्त प्रवृत्तियां मौजूद हैं अपितु इसमें युग-युगांतर को प्रेरित-प्रभावित और रसमग्न करने की क्षमता भी है। इसकी विविधतापूर्ण सर्जनात्मक उपलब्धि जीवन और जगत के लौकिक-अलौकिक आयामों का चित्रण, जीवन-मूल्य का संदेश तथा मंगलाशा सार्वभौम-शाश्वत महत्व के अधिकारी है। भक्ति काव्य सही मायने में एक राष्ट्रीय आंदोलन था जिसमें देश के हर एक क्षेत्र से संत भक्त कवि आते हैं और मनुष्यता की व्यापक भावभूमि पर कविता रचते हैं। जब हम मध्यकालीन संत काव्य परंपरा पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि यह एक राष्ट्रव्यापी सांस्कृतिक आंदोलन था, जिसने अपने मूल्यपरक दृष्टिकोण, विश्व-संस्कृति, लोकमंगल तथा विराट समन्वयशीलता के कारण संपूर्ण संसार को प्रभावित किया। भक्ति काव्य में न केवल समूचे जगत और युग-युगांतर को प्रेरित-प्रभावित और रसमग्न करने की सामग्री है अपितु उसमें भावी मनुष्यता के पथ-प्रदर्शन की अभूतपूर्व क्षमता भी है। साहित्य और संस्कृति, लोक और वेद, इतिहास-पुराण, दर्शन-भक्ति, योग-रहस्य, प्रेम-ज्ञान, प्रबंध-मुक्तक तथा लघु और विराट का ऐसा समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है।

यह एक ऐसा विलक्षण साहित्य है जहाँ ज्ञान, विज्ञान, दर्शन तथा जीवन और जगत के वृहत्तर संदर्भ भी काव्य-सम्पति बन गये है। इस साहित्य में चराचर जगत के प्रति अभेदता एवं एकता का भाव प्रदर्शित किया गया है। अपने इसी व्यापक विधान और मानवीय मूल्यों के प्रति अटूट निष्ठा के कारण ही भक्ति काव्य ने देश के बाहर भी अपना प्रभाव छोड़ा है। वर्तमान विश्व की अनेक समस्याओं का निदान भक्ति काव्य में है जिसके कारण उसकी प्रासंगिकता लगातार बढ़ती जा रही है। भक्ति आंदोलन एवं मध्यकालीन काव्य की चर्चा गुरु जम्भेश्वर जी और जांभाणी साहित्य के बिना पूरी नहीं हो सकती। आज आवश्यकता है कि हम भक्ति आंदोलन का पुनर्मूल्यांकन करें और उसमें गुरु जम्भेश्वर जी और जाम्भाणी साहित्य के योगदान को रेखांकित करें।

मध्यकाल के उत्तर भाग (रीतिकाल) का पुनर्मूल्यांकन अति आवश्यक हैं। इसे केवल शृंगार या कला का काल मानना घोर अन्याय है। इस काल खण्ड में प्रचूर मात्रा में भक्ति और नीति साहित्य की रचना हुई थी, जिसे हाशिये पर धकेल दिया गया है। इस साहित्य के जन सरोकारों पर चर्चा करके ही हम इसका सटीक मूल्यांकन कर सकते हैं।

गुरु जम्भेश्वर जी के सिद्धान्तों व व्यक्तित्व से प्रेरित जाम्भाणी साहित्य गुण एवं परिमाण की दृष्टि से अत्यंत ही समृद्ध है। 500 वर्षों से प्रवाहित इस साहित्य-धारा में 300 से अधिक साहित्य साधक हुए हैं, जिनकी साहित्येतिहास में कहीं चर्चा नहीं मिलती है। अधिकांश जाम्भाणी साहित्य रीतिकाल में लिखा गया भक्ति साहित्य हैं। जब जाम्भाणी साहित्य का पुनर्पाठ होगा तब हिन्दी साहित्य में अनेक नवीन धारणाएं विकसित होगी।

इस वेब संगोष्ठी के माध्यम से मध्यकालीन साहित्य के आलोक में जाम्भाणी साहित्य का मूल्यांकन किया जायेगा। हमें विश्वास है कि इस मंथन से मध्यकाल पर एक नया प्रकाश पड़ेगा। इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई एवं जाम्भाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा ‘‘मध्यकालीन साहित्य का पुनर्पाठ और जाम्भाणी साहित्य’’ विषय पर अन्तरराष्ट्रीय वेब-संगोष्ठी आयोजित करवाने का यह उपक्रम है।

हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई

भारत के विश्वविद्यालयों की मालिका में मुम्बई विश्वविद्यालय सदैव अग्रणी रहा है। यह विश्वविद्यालय आज विश्व के श्रेष्ठ विद्या केन्द्रों में से एक है, यहां देश-विदेश से हजारों विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते हैं। इस विश्वविद्यालय में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में देश को नई दिशा प्रदान करने वाले विद्वानों, विचारकों तथा वैज्ञानिकों का निर्माण किया है। साहित्य, संस्कृति तथा भाषा के अध्ययन तथा अध्यापन के क्षेत्र में भी मुम्बई विश्वविद्यालय की उल्लेखनीय भूमिका रही है। इस विश्वविद्यालय ने देश को छः भारत रत्न प्रदान किए हैं।

मुम्बई विश्वविद्यालय भारतवर्ष के आधुनिक विश्वविद्यालयों में सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 18 जुलाई, 1887 को हुई थी। पहले इसका मुख्य परिसर फोर्ट में बना। आगे चलकर जब अनेक विभाग बने तब कालीना परिसर का भी विकास हुआ। वर्ष 1970 कालीना परिसर में ही हिन्दी विभाग का विधिवत शुभारंभ हुआ। हिन्दी विभाग में आज एम.ए., एम.फिल. एवं पीएच.डी. के साथ-साथ अनुवाद तथा विदेशियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम संचालित होते हैं। हिन्दी विभाग ने अब तक अनेक अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय संगोष्ठियों, पुनश्चर्या तथा संकाय संवर्धन कार्यक्रमों का आयोजन किया है, यहां से पढ़कर निकलने वाले विद्यार्थी आज विभिन्न विश्वविद्यालयों में विभागाध्यक्ष है। यहां के अनेक विद्यार्थी भारत सरकार के अनेक विभागों, महारत्न कम्पनियों तथा बैंकों के राजभाषा विभागों में उच्च पद पर सेवारत हैं, साथ ही सिनेमा जगत्, टेलीविजन तथा थिएटर की दुनियों में भी इस विभाग के विद्यार्थी सेवा दे रहे हैं। विदेशी शिक्षा संस्थानों में भी यहां के अनेक विद्यार्थी अध्ययन-अध्यापन का कार्य कर रहे हैं।

जाम्भाणी साहित्य अकादमी

‘जाम्भाणी साहित्य अकादमी’ एक पंजीकृत राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक संस्था है, जिसका मुख्यालय बीकानेर (राज.) में स्थित है। गुरु जम्भेश्वर जी की शिक्षाओं व जाम्भाणी साहित्य का प्रचार-प्रसार इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है। सन् 2012 ई. में गठित इस संस्था ने अब तक 40 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है तथा 25 से अधिक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय/साहित्यिक संगोष्ठियों, सम्मेलनों व कार्यशालाओं का आयोजन भी कर चुकी है। अकादमी ने इससे पूर्व पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, रेवाड़ी, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर और गोवा विश्वविद्यालय, गोवा के साथ मिलकर राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों/सम्मेलनों का आयोजन किया है।

वेबिनार के चिन्तन बिन्दु

  • साहित्य का पुनर्पाठ: आवश्यकता, स्वरूप एवं आधार।

  • मध्यकालीन परिवेश एवं काव्य रचना ।

  • मध्यकालीन साहित्य के पुनर्पाठ की आवश्यकता एवं स्वरूप ।

  • गुरु जाम्भोजी एवं उनकी वाणी का भक्ति आंदोलन में योगदान।

  • जाम्भाणी साहित्य का मध्यकालीन साहित्य में योगदान ।

  • भक्तिकाल की समन्वय भावना एवं गुरु जाम्भोजी ।

  • मध्यकालीन साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन ।

  • मध्यकालीन साहित्य की दार्शनिक चेतना और जाम्भाणी साहित्य।

  • मध्यकालीन साहित्य में सामाजिक चेतना और जाम्भाणी साहित्य।

  • मध्यकालीन साहित्य में युगबोध और जाम्भाणी साहित्य।

  • मध्यकालीन साहित्य का शिल्प विधान और जाम्भाणी साहित्य।

  • मध्यकालीन साहित्य की वर्तमानिक प्रासंगिकता।

  • मध्यकलीन साहित्य में पर्यावरण चेतना और जाम्भाणी साहित्य।

उपर्युक्त के अतिरिक्त मुख्य विषय से संबंधित कोई उपविषय बनाया जा सकता है।

वेबिनर दिनांक: 29-30 जून 2020

Conference Brochure